GP:प्रवचनसार - गाथा 92 - अर्थ
From जैनकोष
[यः आगमकुशल:] जो आगम में कुशल हैं, [निहतमोहदृष्टि:] जिसकी मोह-दृष्टि हत हो गई है और [विरागचरिते अभ्युत्थित:] जो वीतराग-चारित्र में आरुढ़ है, [महात्मा श्रमण:] उस महात्मा श्रमण को [धर्म: इति विशेषित:] (शास्त्र में) 'धर्म' कहा है ॥९२॥