GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 100 - टीका हिंदी
From जैनकोष
सामायिक की वृद्धि किन भावों से करे ? इसके उत्तर स्वरूप में बतलाते हैं कि व्यापार-शरीर की चेष्टा और वैमनस्य- मन की व्यग्रता अथवा चित्त की कलुषता से रहित होकर मानसिक विकल्पों को विशेषरूप से हटाते हुए उपवास अथवा एकाशन के दिन विशेषरूप से सामायिक को बढ़ाना चाहिए । यहाँ पर चकार से उससे अन्य समय का भी ग्रहण होता है अर्थात् उपवास और एकाशन के सिवाय अन्य दिनों में भी सामायिक को बढ़ानी चाहिए ।