GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 102 - टीका हिंदी
From जैनकोष
जिस समय गृहस्थ सामायिक करता है, उस काल में उसके खेती आदि के आरम्भ से सहित सभी बहिरंग-अन्तरंग तथा चेतन-अचेतन परिग्रह नहीं होते हैं । इसलिए वह गृहस्थ सामायिक अवस्था में उपसर्ग से वस्त्राच्छादित मुनि के समान मुनिपने को प्राप्त होता है ।