GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 103 - टीका हिंदी
From जैनकोष
जिन्होंने सामायिक को स्वीकार किया है, ऐसे गृहस्थ ध्यान में स्थिर होकर ध्यान करने की प्रतिज्ञा से चलायमान नहीं होते हुए तथा मौनव्रतधारी बनकर शीत-उष्ण, डांस-मच्छर आदि की पीड़ाकारक परीषह को तथा देव-मनुष्य एवं तिर्यञ्चों के द्वारा किये गये उपसर्ग को दीनतापूर्वक शब्दों का उच्चारण नहीं करते हुए सहन करें ।