GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 105 - टीका हिंदी
From जैनकोष
सामायिक के पाँच अतिचार कहते हैं, यथा- मनदुष्प्रणिधान, वचनदुष्प्रणिधान, कायदुष्प्रणिधान इन तीन योगों की खोटी प्रवृत्तिरूप तीन अतिचार और अनादक तथा अस्मरण-एकाग्रता का अभाव ये सब मिलकर सामायिक के पाँच अतिचार हैं ।