GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 110 - टीका हिंदी
From जैनकोष
यहाँ पर जीव जन्तु हैं कि नहीं ? इस प्रकार चक्षु से अवलोकन करना दृष्ट कहलाता है और कोमल उपकरण से परिमार्जन करना मृष्ट कहलाता है । जिसमें ये दोनों न हों, वह अदृष्टमृष्ट कहलाता है । अदृष्टमृष्ट का सम्बन्ध ग्रहण, विसर्ग, आस्तरण इन तीनों के साथ है। इसलिए अदृष्टमृष्ट ग्रहण, अदृष्टमृष्ट विसर्ग, अदृष्टमृष्टास्तरण ये तीन अतिचार हैं। अदृष्टमृष्टग्रहण अतिचार उसके होता है जो भूख से पीडि़त होकर अर्हन्तादि की पूजा के उपकरण तथा अपने वस्त्रादि को बिना देखे और बिना शोधे ग्रहण करता है । अदृष्टमृष्टविसर्ग जो भूख से पीडि़त होने के कारण बिना देखी, बिना शोधी भूमि पर मलमूत्रादि विसर्जित करते हैं । अदृष्टमृष्टास्तरण भूख से पीडि़त होकर बिना देखी, बिना शोधी भूमि पर बिस्तर आदि बिछाना । इन तीन के सिवाय अनादर और अस्मरण ये दो अतिचार और हैं । यथा- भूख से पीडि़त होने के कारण आवश्यक कार्यों में आदर नहीं करना, उपेक्षा का होना अनादर नाम का अतिचार है और चित्तविक्षिप्त होना एकाग्रता नहीं होना अस्मरण नाम का अतिचार है ।