GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 112 - टीका हिंदी
From जैनकोष
संयमी दो प्रकार के हैं, देशव्रती और सकलव्रती । इन संयमीजनों पर व्याधि आदि अनेक प्रकार की आयी हुई आपत्तियों को गुणानुराग-भक्ति से प्रेरित होकर दूर करना, उसके पैर आदि अंगों का मर्दन करना-दबाना तथा अन्य भी अनुकूल सेवा वैयावृत्ति करना यह वैयावृत्य नामक शिक्षाव्रत है । यह वैयावृत्ति केवल व्यवहार अथवा किसी दृष्टफल की अपेक्षा से न करके भक्ति के वशीभूत होकर की जाती है ।