GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 115 - टीका हिंदी
From जैनकोष
यतियों को प्रणाम करने से उच्चगोत्र का बंध होता है । भोजन की शुद्धिपूर्वक दान देने से भोगों की प्राप्ति होती है । पडग़ाहनादि करने से सर्वत्र पूजा-प्रभावना होती है । भक्ति -- उनके गुणानुराग से उत्पन्न अन्तरङ्ग में श्रद्धाविशेष से सुन्दररूप और स्तुति अर्थात् 'आप ज्ञान के सागर स्वरूप हैं' इत्यादि स्तुति करने से कीर्ति प्राप्त होती है ।