GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 116 - टीका हिंदी
From जैनकोष
सत्पात्र को दिया गया अल्प भी दान संसारी प्राणियों को सुन्दर रूप तथा भोगोपभोगादि अनेक प्रकार के इष्ट फल प्रदान करता है । दान के पक्ष में छाया विभवं का समास - 'छाया माहात्म्यं विभव: सम्पत् तौ विद्येते यत्र' यह फल का विशेषण है । छाया का अर्थ माहात्म्य होता है और विभव का अर्थ सम्पत्ति होता है। छाया और माहात्म्य ये दोनों जिस फल में विद्यमान हैं, उस फल की प्राप्ति दान देने से होती है । जिस प्रकार उत्तम भूमि में बोया गया छोटा-सा वट का बीज प्राणियों को बहुत भारी छाया और बहुत अधिक रूप में फल प्रदान करता है । 'छाया-आतपनिरोधिनी तस्या विभव: प्राचुर्यं यथाभवत्येवं' इस प्रकार वटबीज पक्ष में छाया का अर्थ धूप का अभाव और विभव का अर्थ प्राचुर्य-अधिकता लिया गया है ।