GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 117 - टीका हिंदी
From जैनकोष
पण्डितों ने दान का चार प्रकार से निरूपण किया है । यथा -- आहार-भक्त-पानादि को आहार कहते हैं । रोग दूर करने वाले द्रव्य को औषधि कहते हैं । ज्ञानोपकरणादि को उपकरण कहते हैं । वसति आदि को आवास कहते हैं । इन चारों प्रकार की वस्तुओं की देने से वैयावृत्ति के चार प्रकार होते हैं ।