GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 122 - टीका हिंदी
From जैनकोष
उपद्रव को उपसर्ग कहते हैं । वह तिर्यंच, मनुष्य, देव और अचेतनकृत इस प्रकार चार प्रकार का है । जब अन्न की एकदम कमी हो जाती है, सभी जीव-जन्तु भूख से पीडि़त होने लगते हैं, वह दुर्भिक्ष-अकाल कहलाता है । वृद्धावस्था के कारण शरीर अत्यन्त जीर्ण हो जाता है, उसे जरा कहते हैं । रोग की उद्भूति को रुजा कहते हैं । ये चारों इस रूप में उपस्थित हो जायें कि जिनका प्रतिकार नहीं हो सके, तब रत्नत्रयधर्म की आराधना करने के लिए शरीर छोडऩे को सल्लेखना कहते हैं । किन्तु स्व और पर के प्राणघात के लिए जो शरीर का त्याग किया जाता है, वह सल्लेखना नहीं है ।