GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 123 - टीका हिंदी
From जैनकोष
अन्तिम समय में यानी जीवन के अन्त में संन्यास धारण करना ही तप का फल है, तप की सफलता है, ऐसा सर्वज्ञदेव कहते हैं । अथवा सर्वदर्शी उसी तप के फल की प्रशंसा करते हैं, जो अन्त समय संन्यास का आश्रय लेता है । अत: समाधिमरण के लिए पूर्णरूप से प्रयत्न करना चाहिए ।