GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 128 - टीका हिंदी
From जैनकोष
तत्पश्चात् उस गर्म जल का भी त्यागकर अपनी शक्ति का अतिक्रमण नहीं करके कुछ उपवास भी करे । और अन्त में यत्नपूर्वक व्रत-संयम-चारित्र, ध्यान-धारणादि सभी कार्यों में तत्पर रहते हुए पंचनमस्कार मंत्र में अपने चित्त को लगाते हुए शरीर को भी छोड़ देवे ।