GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 132 - टीका हिंदी
From जैनकोष
नि:श्रेयस—मोक्ष में वे जीव रहते हैं, जो विद्या—केवलज्ञान, दर्शन—केवलदर्शन, शक्ति—अनन्तवीर्य, स्वास्थ्य—परम उदसीनता, प्रह्लाद—अनन्तसुख, तृप्ति—विषयों की आकाङ्क्षा का अभाव, शुद्धि—द्रव्यकर्म-भावकर्म-नोकर्म से रहितपना, इन सभी से युक्त हैं । निरतिशय—विद्या आदि गुणों की हीनाधिकता से रहित हैं और निरवधि—काल की अवधि से रहित हैं । जो इन सब विशेषणों से युक्त हैं, वे जीव नि:श्रेयस में सुख से निवास करते हैं ।