GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 136 - टीका हिंदी
From जैनकोष
श्रावक के जो पद—स्थान हैं, वे श्रावक की प्रतिमा कहलाती हैं । तीर्थङ्कर ने श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएँ कही हैं, उन प्रतिमाओं में अपनी-अपनी प्रतिमाओं से सम्बन्धित गुण पिछली प्रतिमाओं से सम्बन्ध रखकर क्रम से वृद्धि को प्राप्त होते हुए (सम्यग्दर्शन को आदि लेकर ग्यारह प्रतिमा तक) विशेषरूप से बढ़ जाते हैं । अर्थात् अगली प्रतिमाओं में स्थित पुरुष को पूर्व की प्रतिमा से सम्बन्धित गुणों का परिपालन करना अनिवार्य है ।