GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 140 - टीका हिंदी
From जैनकोष
'प्रोषधेनानशनमुपवासो यस्यासौ प्रोषधानशन:' इस विग्रह के अनुसार धारण-पारणा के दिन एकाशन और पर्व के दिन जो उपवास करता है, वह प्रोषधनियमविधायी कहलाता है । जो बिना नियम के प्रोषध-उपवास करता है, वह भी प्रोषधव्रत सम्पन्न कहलाता है । इसके उत्तरस्वरूप कहते हैं कि प्रोषधोपवास के नियम का परिपालन करने वाला तो अवश्य ही नियमपूर्वक पर्व के दिनों में अर्थात् दो अष्टमी और दो चतुर्दशी के दिनों में प्रोषधोपवास व्रत का परिपालन करता है । तो क्या चातुर्मास के प्रारम्भ से इस व्रत का पालन किया जाता है? उत्तर देते हैं कि प्रत्येक माह की दो अष्टमी और दो चतुर्दशी इस प्रकार पर्व के चारों दिनों में अपनी शक्ति को न छिपाकर उपवास करना होता है । इस प्रतिमा का धारक एकाग्रता से शुभ ध्यान में तत्पर रहता है ।