GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 142 - टीका हिंदी
From जैनकोष
वह श्रावक रात्रि भोजन त्याग प्रतिमाधारी कहलाता है, जो अन्न, भात, दाल आदि, पान-दाख आदि का रस, खाद्य—लड्डू आदि और लेह्य-रबड़ी आदि पदार्थों को जीवों पर अनुकम्पा दया करता हुआ रात्रि में नहीं खाता है ।