GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 144 - टीका हिंदी
From जैनकोष
जो आरम्भादि से सब ओर से निवृत्त होता है, वह आरम्भनिवृत्त कहलाता है । आरम्भ में नौकरी खेती तथा व्यापार आदि प्रमुख हैं । आरम्भादि का त्याग क्यों किया जाता है ? इसके समाधान में 'प्राणातिपातहेतो:' यह हेत्वर्थक विशेषण दिया है कि जो आरम्भ प्राणघात का कारण है, इसलिए इससे निवृत्त होना चाहिए । इस विशेषण के देने से यह सिद्ध हो जाता है कि आरम्भत्याग प्रतिमाधारी श्रावक अभिषेक, दान-पूजन आदि के लिए आरम्भ कर सकता है । उससे निवृत्त नहीं हो सकता, क्योंकि यह प्राणघात का कारण नहीं है, यह कार्य प्राणिहिंसा को बचाकर ही किया जाता है । यहाँ पर प्रश्र हो सकता है कि जिस व्यापारादि में हिंसा नहीं होती, उसे वह कर सकता है क्या ? इसके उत्तर में कहा है कि ऐसे आरम्भ से उसकी निवृत्ति न हो, यह हमें अनिष्ट नहीं है, क्योंकि जो आरम्भ प्राणिपीड़ा का हेतु है, उससे निवृत्त होने वाले श्रावक के यह आरम्भत्याग प्रतिमा होती है ।