GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 148 - टीका हिंदी
From जैनकोष
यदि श्रावक आगम को जानने वाला है तो उसको यह निश्चय है कि पाप / अधर्म / मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र जीव का शत्रु है, क्योंकि यह अनेक प्रकार से अपकार करने वाला है और धर्म-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्ररूप परिणति अनेक उपकार का कारण होने से जीव की बन्धु है । तब वह श्रेष्ठ ज्ञाता होता है ।