GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 14 - टीका हिंदी
From जैनकोष
कुत्सित: पन्था कापथ: तस्मिन् कापथे कापथ का अर्थ खोटा मार्ग-कुमार्ग होता है । मिथ्यादर्शनादि संसार-भ्रमण के मार्ग होने से कुत्सितमार्ग कहलाते हैं । ऐसे कुमार्ग में अथवा कुमार्ग में स्थित मिथ्यादर्शनादि के आधार-भूत जीव के विषय में मन से ऐसी सम्मति नहीं करना कि यह कल्याण का मार्ग है । तथा शरीर से / नखों से चुटकी बजाकर, अङ्गुलियाँ चलाकर अथवा मस्तक हिलाकर उसकी प्रशंसा नहीं करना, तथा वचन से भी उसका संस्तवन नहीं करना, इस प्रकार मन-वचन-काय के द्वारा मिथ्यादर्शनादि की और उसके धारण करने वाले की प्रशंसा नहीं करना सम्यग्दर्शन का अमूढदृष्टि गुण है ।