GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 17 - टीका हिंदी
From जैनकोष
स्वस्य यूथ: स्वयूथ: तस्मिन् भवा: स्वयूथ्यास्तान् अपने सहधर्मी बन्धुओं के समूह में रहने वालों को स्वयूथ्य कहते हैं । इन सहधर्मियों के प्रति सद्भावना सहित अर्थात् सरलभाव से मायाचार रहित, यथायोग्य - हाथ-जोडऩा, सम्मुख-जाना, प्रशंसा के वचन कहना तथा योग्य उपकरण आदि देकर जो आदर सत्कार किया जाता है, वह वात्सल्य-गुण कहलाता है । वत्सलस्य भाव: कर्म वा वात्सल्यम् वात्सल्य का अर्थ सहधर्मी भाइयों के प्रति धार्मिक स्नेह का होना ।