GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 21 - टीका हिंदी
From जैनकोष
जिन नि:शंकितादि अंगों का वर्णन ऊपर किया है, उन अंगों से रहित विकलांग सम्यग्दर्शन संसार परम्परा का जन्म-मरण की सन्तति का नाश करने में समर्थ नहीं हो सकता । इसी अर्थ का समर्थन करते हुए मन्त्र का दृष्टान्त देते हैं -- जिस प्रकार किसी मनुष्य को सर्प ने काट लिया और विष की वेदना सारे शरीर में व्याप्त हो गई तो उस विष वेदना को दूर करने के लिए अर्थात् विष उतारने के लिए मान्त्रिक मन्त्र का प्रयोग करता है । यदि उस मन्त्र में एक अक्षर भी कम हो जाय तो जिस प्रकार उस मन्त्र से विष की वेदना शमित-दूर नहीं हो सकती, उसी प्रकार संसार-परिपाटी का उच्छेद करने के लिए आठ अंगों से परिपूर्ण सम्यग्दर्शन ही समर्थ है, एक दो आदि अंगों से रहित विकलांग सम्यग्दर्शन नहीं ।