GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 22 - टीका हिंदी
From जैनकोष
नदी, सागरादि में धर्मबुद्धि कल्याण का साधन समझकर, स्नान करना लोकमूढ़ता कही गई है, किन्तु शरीर प्रक्षालन के अभिप्राय से स्नान करना लोकमूढता नहीं है । तथा बालू और पत्थरों के ऊँचे ढेर लगाकर स्तूप बनाना, पर्वतों से भृगुपात करना अर्थात् पर्वतों की चोटी से गिरकर आत्मघात करना, अग्रि में प्रविष्ट हो जाना, इत्यादि कार्यों के करने में धर्म मानना वह लोकमूढ़ता है ।