GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 25 - टीका हिंदी
From जैनकोष
जिनका मद नष्ट हो गया है, ऐसे जिनेन्द्रदेव ज्ञानादिक आठ वस्तुओं के आश्रय से जो गर्व उत्पन्न होता है, उसे मद कहते हैं । अपने क्षायोपशमिक ज्ञान का घमण्ड करना ज्ञानमद कहलाता है । अपनी पूजा-प्रतिष्ठा-सम्मान आदि का गर्व करना पूजामद है । पिता के वंश को कुल कहते हैं । इसका अहंकार करना कुल मद है । माता के वंश को जाति कहते हैं, जाति का गर्व करना जातिमद है । शारीरिक शक्ति का गर्व करना बलमद है। बुद्धि या धन-वैभव का गर्व करना ऋद्धिमद है । अनशनादि तपों का अहंकार करना तपमद है । स्वस्थ-सुन्दर शरीर को पाकर उसका घमण्ड करना शरीरमद है ।
यहाँ कोई शंका करता है कि कला-कौशल का भी तो मद होता है, इसलिए नौ मद होग ये । अत: आपके द्वारा बतायी गयी मदों की आठ संख्या सिद्ध नहीं होती ? इसके उत्तर में टीकाकार का कहना है कि शिल्प का मद ज्ञानमद में ही गर्भित हो जाता है । इसलिए नौवाँ मद मानने की कोई आवश्यकता नहीं है।