GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 26 - टीका हिंदी
From जैनकोष
जिन आठ-मदों का पहले वर्णन किया गया है, उनके विषय में अहङ्कार को करता हुआ जो पुरुष रत्नत्रय-रूप धर्म में स्थित अन्य धर्मात्माओं का तिरस्कार करता है, अवज्ञा के द्वारा उनका उल्लङ्घन करता है, वह जिनेन्द्र प्रणीत अपने ही रत्नत्रय धर्म का तिरस्कार करता है, क्योंकि रत्नत्रय का परिपालन करने वाले धर्मात्माओं के बिना धर्म नहीं रह सकता ।