GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 27 - टीका हिंदी
From जैनकोष
प्रश्र यह है कि कुल-ऐश्वर्य आदि सम्पत्ति से सहित मनुष्य मद को कैसे रोके ? उत्तर स्वरूप बतलाया है कि विवेकी जनों को ऐसा विचार करना चाहिये कि यदि मेरे ज्ञानावरणादि अशुभ कर्मों के आस्रव को रोकने वाले रत्नत्रय-धर्म का सद्भाव है, तो मुझे कुल-ऐश्वर्य आदि अन्य सम्पदा से क्या प्रयोजन है ? क्योंकि उससे भी श्रेष्ठतम सम्पत्ति-रूप रत्नत्रयधर्म मेरे पास विद्यमान है । इस प्रकार का विवेक होने से उन कुल ऐश्वर्यादि के निमित्त से अहङ्कार नहीं होता । इसके विपरीत यदि ज्ञानावरणादि अशुभ कर्मरूप पाप का आस्रव हो रहा है -- मिथ्यात्व, अविरति आदि आस्रवभाव विद्यमान हैं तो अन्य सम्पदा से क्या प्रयोजन है ? क्योंकि उस पापास्रव से दुर्गति गमन आदि फल की प्राप्ति नियम से होगी, ऐसा विचार करने से कुल ऐश्वर्य आदि का गर्व दूर हो जाता है ।