GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 29 - टीका हिंदी
From जैनकोष
सम्यग्दर्शनादिरूप धर्म के माहात्म्य से कुत्ता भी देवपर्याय को प्राप्त कर लेता है और मिथ्यात्वादि अधर्म-पाप के उदय से देव भी कुत्ता हो जाता है । इस तरह धर्म का अद्वितीय माहात्म्य है कि जिससे संसारी प्राणियों को ऐसी सम्पदा की प्राप्ति होती है जो वचनों के द्वारा कही नहीं जा सकती, इसलिए प्रेक्षावानों को धर्म का ही अनुष्ठान करना चाहिए ।