GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 31 - टीका हिंदी
From जैनकोष
जिस प्रकार समुद्र के उस पार जाने के लिए नाव को उस पार पहुँचाने में खेवटिया-मल्लाह की प्रधानता होती है, उसी प्रकार संसार-समुद्र से पार होने के लिए मोक्षमार्गरूपी नाव की प्रवृत्ति सम्यग्दर्शनरूप कर्णधार के अधीन होती है । इसी कारण मोक्षमार्ग में ज्ञान और चारित्र की अपेक्षा सम्यग्दर्शन को श्रेष्ठता या उत्कृष्टता प्राप्त होती है ।