GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 33 - टीका हिंदी
From जैनकोष
जो गृहस्थ सम्यग्दर्शन का घात करने वाले मोहनीय कर्म से रहित होने के कारण सम्यग्दर्शनरूप परिणत है वह तो मोक्षमार्ग में स्थित है, किन्तु जो यति दर्शनमोह-मिथ्यात्व से सहित है वह मोक्षमार्ग में स्थित नहीं है । इस प्रकार मिथ्यात्व युक्त मुनि की अपेक्षा सम्यक्त्व सहित गृहस्थ श्रेष्ठ है ।