GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 38 - टीका हिंदी
From जैनकोष
निर्मल सम्यग्दर्शन के धारक मनुष्य ही चक्ररत्न को चलाने में समर्थ होते हैं अर्थात् अपने अधीन होने से उसे उसके द्वारा साध्य समस्त कार्यों में प्रवर्ताने के लिए समर्थ होते हैं। तथा वे सर्वभूमि- षट्खण्ड के अधिपति चक्रवर्ती होते हैं । नौ निधियों और चौदह रत्नों के स्वामी होते हैं, जो दोषों से प्राणियों की रक्षा करते हैं ऐसे राजाओं के मुकुटों की कलगियों पर उन चक्रवर्ती के चरण रहते हैं अर्थात् समस्त पृथ्वी के मुकुटबद्ध राजा मस्तक झुकाकर चक्रवर्ती के चरणों में नमस्कार करते हैं ।