GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 39 - टीका हिंदी
From जैनकोष
सम्यग्दर्शन के माहात्म्य से जीव धर्मचक्र को प्रवर्ताने वाले तीर्थङ्कर होते हैं । उर्ध्वलोक के स्वामी सौधर्मेन्द्रादि अमरपति होते हैं । अधोलोक के स्वामी धरणेन्द्र आदि असुरपति होते हैं, तिर्यग्लोक के स्वामी चक्रवर्ती तथा यमधरपति-मुनियों के स्वामी गणधरदेव उन तीर्थङ्करों के चरण कमलों की स्तुति किया करते हैं । वे धर्मादि पदार्थों को अच्छी तरह निश्चय-रूप से जान चुके हैं और अनेक प्रकार के दु:ख देने वाले कर्मरूपी शत्रुओं से पीडि़त जीवों को शरण देने में साधु होते हैं ।