GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 43 - टीका हिंदी
From जैनकोष
सम्यग्श्रुतज्ञान प्रथमानुयोग को जानता है । जिसमें एक पुरुष से सम्बन्धित कथा होती है, वह चरित्र कहलाता है और जिसमें त्रेशठ शलाका पुरुषों से सम्बन्ध रखने वाली कथा होती है, उसे पुराण कहते हैं । चरित्र और पुराण ये दोनों ही प्रथमानुयोग शब्द से कहे जाते हैं । यह प्रथमानुयोग कल्पित अर्थ का वर्णन नहीं करता, किन्तु परमार्थ-भूत विषय का प्रतिपादन करता है । इसलिए इसे अर्थाख्यान कहते हैं । इसको पढऩे और सुनने वालों को पुण्य का बन्ध होता है, इसलिए इसे पुण्य कहा है । तथा यह प्रथमानुयोग बोधि अर्थात् सम्यग्दर्शनादिरूप रत्नत्रय की प्राप्ति और समाधि अर्थात् धर्म्य और शुक्लध्यान की प्राप्ति का निधान-खजाना है । इस प्रकार इस अनुयोग को सुनने से सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति और धर्म्यध्यानादिक होते हैं ।