GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 45 - टीका हिंदी
From जैनकोष
सम्यग्ज्ञान चरणानुयोग को भी जानता है । चारित्र का प्रतिपादन करने वाले आचारांग आदि शास्त्र चरणानुयोग शास्त्र कहलाते हैं । इन शास्त्रों में गृहस्थ-श्रावक और मुनियों के चारित्र की उत्पत्ति, वृद्धि और रक्षा के कारणों का विशद वर्णन है । समीचीन श्रुतज्ञान इन सब शास्त्रों को विशेषरूप से जानता है ।