GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 49 - टीका हिंदी
From जैनकोष
हिंसादि पापों के त्याग से चारित्र होता है । हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुनसेवन और परिग्रह इनके स्वरूप का कथन ग्रन्थकार आगे करेंगे, क्योंकि ये पापरूप गन्दे पानी को बहाने के लिए गन्दे नालों के समान हैं, इसलिए हेय और उपादेय तत्त्वों के ज्ञाता इन पापों से विरक्त होते हैं ।