GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 51 - टीका हिंदी
From जैनकोष
गृहस्थों का जो विकल-चारित्र है, वह अणु-व्रत, गुण-व्रत और शिक्षा-व्रत के भेद से तीन प्रकार का है । उन तीनों में प्रत्येक के क्रम से पाँच भेद, तीन भेद और चार भेद कहे गये हैं । अर्थात् पाँच अणु-व्रत, तीन गुण-व्रत और चार शिक्षा-व्रत-रूप भेद जानने चाहिए ।