GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 54 - टीका हिंदी
From जैनकोष
'विविधा विरूपका वा अतिचारा दोषा: व्यतिचारा:' इस समास के अनुसार व्यतीचार का अर्थ है- नाना प्रकार के अथवा व्रत को विकृत करने वाले दोष । ये अतिचार-दोष पाँच हैं । दुर्भावना से नाक, कानादि अवयवों को छेदना, इच्छित स्थान पर जाने से रोकने के लिए रस्सी आदि से बाँध देना, डण्डे कोड़े आदि से पीटना, उचित भार से अधिक भार लादना तथा अन्न पानादिरूप आहार का निषेध करना अथवा थोड़ा देना -- अहिंसाणुव्रत के ये पाँच अतिचार हैं ॥५४॥