GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 61 - टीका हिंदी
From जैनकोष
परिग्रह का परिमाण करने वाला परिग्रह-परिमाणाणुव्रती कहलाता है । क्योंकि प्रमाण से अधिक में होने वाली इच्छा का निरोध हो गया । अपनी इच्छा से धन-गाय-भैंस आदि । धान्य- चावल आदि । तथा आदि शब्द से दासी-दास, स्त्री, मकान, नकद, द्रव्य, सोना, चाँदी आदि के आभूषण तथा वस्त्रादि के संग्रह-रूप परिग्रह की संख्या का परिमाण कर उससे अधिक वस्तु में वाञ्छा-इच्छा नहीं रखना, इसलिए इसका दूसरा नाम इच्छा-परिमाण-व्रत भी है ।