GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 62 - टीका हिंदी
From जैनकोष
विक्षेप का अर्थ अतिचार है । जिस प्रकार अहिंसादि अणुव्रतों के पाँच-पाँच अतिचार बतलाये गये हैं, उसी प्रकार परिग्रह-परिमाणाणुव्रत के भी पाँच अतिचार निश्चित किये गये हैं। श्लोक में आया हुआ च शब्द 'अपि' अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। वे अतिचार इस प्रकार हैं --
- अतिवाहन लोभ की तीव्रता को कम करने के लिए परिग्रह का परिमाण कर लेने पर भी लोभ के आवेश से अधिक वाहन करता है अर्थात् बैल आदि पशु जितने मार्ग को सुखपूर्वक पार कर सकते हैं, उससे अधिक दूर तक उन्हें चलाना अतिवाहन कहलाता है । अति शब्द प्रत्येक में लगाना चाहिए ।
- अतिसंग्रह यह धान्यादिक आगे जाकर बहुत लाभ देगा, इस लोभ के वश से जो अधिक संग्रह करता है, उसका यह कार्य अतिसंग्रह नामक अतिचार है।
- अतिविस्मय संगृहीत वस्तु को वर्तमान भाव से बेच देने पर किसी का मूल भी वसूल नहीं हुआ और दूसरा कुछ ठहर कर बेचता है तो उसके अधिक लाभ होता है, यह देखकर लोभ के आवेश से जो अत्यन्त खेद एवं अतिविस्मय करता है । यह अतिविस्मय नामक अतिचार है ।
- अतिलोभ विशिष्ट अर्थलाभ होने पर भी और भी अधिक लाभ की आकाङ्क्षा करता है, वह अतिलोभ नाम का अतिचार है ।
- अतिभारारोपण लोभ के आवेश से अधिक भार लादना अतिभारारोपण अतिचार है । अतिभारारोपण अतिचार अहिंसाणुव्रत के अतिचारों में आया है । परन्तु वहाँ पर कष्ट देने का भाव है और यहाँ पर अधिक लाभ-प्राप्ति की भावना है ।