GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 68 - टीका हिंदी
From जैनकोष
दसों दिशाओं में सीमा निर्धारित करके ऐसा संकल्प करना कि मैं इस सीमा से बाहर नहीं जाऊंगा, इसे दिग्व्रत कहते हैं । दिग्व्रत मरणपर्यन्त के लिए धारण किया जाता है । दिग्व्रत का प्रयोजन सूक्ष्म पापों से निवृत्त होता है । अर्थात् मर्यादा के बाहर सर्वथा जाना-आना बन्द हो जाने से वहाँ सूक्ष्म पाप की भी निवृत्ति हो जाती है ।