GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 76 - टीका हिंदी
From जैनकोष
जो उपदेश पाप को उत्पन्न करने में कारण हो, उसे पापोपदेश कहते हैं । उसके तिर्यग्क्लेशादि भेद कहते हैं, अर्थात् तिर्यञ्चों को वश में करने की प्रक्रिया तिर्यग्क्लेश है । जैसे -- हाथी आदि को वश में करने की क्रिया । लेन-देन आदि का व्यापार वाणिज्य है । प्राणियों का वध करना हिंसा है । खेती आदि का कार्य आरम्भ कहलाता है । तथा दूसरों को ठगने आदि की कला प्रलम्भन है । तिर्यग्क्लेश के समान मनुष्यक्लेश भी होता है, अर्थात् मनुष्यों के साथ इस प्रकार की क्रिया करना जिनसे उनको दु:ख-क्लेश हो । इन सभी प्रकार की कथा-वार्ताओं का प्रसङ्ग उपस्थित करना अर्थात् बार-बार इनका उपदेश देना वह पापोपदेश नामक अनर्थदण्ड है । इनके परित्याग करने से पापोपदेश अनर्थदण्डव्रत होता है ।