GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 77 - टीका हिंदी
From जैनकोष
हिंसा के उपकरण दूसरों को देना, इसे गणधरदेवादिकों ने हिंसादान कहा है । फरसा आदि को परशु कहते हैं । तलवार कृपाण है । पृथ्वी को खोदने के साधन कुदाली, फावड़ा आदि खनित्र कहे जाते हैं । अग्रि को ज्वलन कहते हैं। छुरी, लाठी आदि आयुध हैं । विषसामान्य को शृङ्गी कहते हैं और बन्धन का साधन सांकल है । ये सब हिंसा के कारण हैं । इनको दूसरों के लिए देना हिंसादान अनर्थदण्ड है, इसका त्याग करना हिंसादान अनर्थदण्डव्रत है ।