GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 79 - टीका हिंदी
From जैनकोष
खेती आदि करना आरम्भ है और संग-परिग्रह है । इन दोनों का प्रतिपादन वार्तानीति में किया जाता है । 'कृषि: पशुपाल्यं-वाणिज्यं च वार्ता' इति अभिधानात् अर्थात् खेती, पशुपालन और व्यापार यह सब वार्ता है, ऐसा कहा गया है। अर्थशास्त्र को वार्ता कहते हैं । साहस का अर्थ अत्यन्त आश्चर्यजनक कार्य है । जिसका वर्णन वीर पुरुषों की कथाओं में किया जाता है । अद्वैतवाद तथा क्षणिकवाद मिथ्यात्व हैं। इनका वर्णन प्रमाणविरुद्ध अर्थ के प्रतिपादक शास्त्रों के द्वारा किया जाता है । द्वेष-द्वेषीकरण द्वेष को उत्पन्न करने वाले शास्त्रों के द्वारा कहा जाता है । वशीकरण आदि शास्त्रों के द्वारा राग उत्पन्न किया जाता है । मद-अहंकार है । इसकी उत्पत्ति 'वर्णानां ब्राह्मणो गुरु:' वर्णों का गुरु ब्राह्मण है इत्यादि ग्रन्थों से जानी जाती है । मदन का अर्थ काम है । यह रतिगुण विलासपताका आदि शास्त्रों से उत्कट होता है । इस प्रकार आरम्भादि के द्वारा चित्त को कलुषित करने वाले शास्त्रों का श्रवण करना दु:श्रुति नामक अनर्थदण्ड है । इसका त्याग करना दु:श्रुति अनर्थदण्डव्रत है ।