GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 83 - टीका हिंदी
From जैनकोष
जो पदार्थ एक बार भोगकर छोड़ दिये जाते हैं, वे पुन: काम में नहीं आते, ऐसी भोजन, पुष्प, गन्ध और विलेपन आदि वस्तुएँ भोग कहलाती हैं तथा जो पहले भोगी हुई वस्तु बार-बार भोगने में आवे, वह उपभोग है । जैसे -- वस्त्र, आभूषण आदि। इन भोग और उपभोग की वस्तुओं का नियम करना भोगोपभोग परिमाणव्रत कहलाता है ।