GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 84 - टीका हिंदी
From जैनकोष
जिनेन्द्र भगवान् के चरणों की शरण लेने वाले श्रावक को द्वीन्द्रियादि त्रस जीवों की हिंसा से बचने के लिए मधु और मांस का त्याग करना चाहिए तथा प्रमाद से बचने के लिए मदिरा-शराब का त्याग करना चाहिए । यह माता है या स्त्री इस प्रकार के विवेक के अभाव को प्रमाद कहते हैं ।