GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 86 - टीका हिंदी
From जैनकोष
जो वस्तु भक्ष्य होने पर भी अनिष्ट, अहितकर हो, प्रकृतिविरुद्ध हो अर्थात् उदरशूल आदि का कारण हो, उसे छोड़ देना चाहिए। इतना ही नहीं किन्तु गोमूत्र, ऊंटनी का दूध, शंखचूर्ण, पान का उगाल, लार, मूत्र, पुरीष तथा श्लेष्मादि वस्तुएँ अनुपसेव्य हैं । शिष्ट पुरुषों के सेवन करने योग्य नहीं हैं, इसलिए इनका भी त्याग करना चाहिए । क्योंकि अनिष्टपने और अनुपसेव्यपने के कारण छोडऩे योग्य विषय से अभिप्रायपूर्वक निवृत्ति होने को व्रत कहते हैं ।