GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 87 - टीका हिंदी
From जैनकोष
भोग और उपभोग का परिमाण यम और नियम के भेद से दो प्रकार का कहा गया है । जो परिमाण परिमितकाल के लिए अर्थात् समय की मर्यादा लेकर किया जाता है, वह नियम कहलाता है तथा जो जीवनपर्यन्त के लिए धारण किया जाता है वह यम कहलाता है ।