GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 92 - टीका हिंदी
From जैनकोष
मर्यादित देश में भी नियतकाल तक स्तोक स्थान में रहना देशावकाश है। यह देशावकाश जिस व्रत का प्रयोजन है, वह देशावकाशिक शिक्षाव्रत है । दिग्व्रत में जीवनपर्यन्त के लिए जो विशाल क्षेत्र की सीमा बांधी थी, उसमें भी एक दिन, एक पहर आदि काल की मर्यादा लेकर और भी कम करना वह देशावकाशिक शिक्षाव्रत कहलाता है । यह व्रत अणुव्रती श्रावकों के होता है । 'अणूनि सूक्ष्माणि व्रतानि येषां ते अणुव्रता:, तेषाम्' इस प्रकार समास करने से अणुव्रतधारी श्रावक ही होते हैं ।