GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 93 - टीका हिंदी
From जैनकोष
'तपोभि: वृद्धा: तपोवृद्धा:' इस निरुक्ति के अनुसार तप से वृद्ध चिरकालीन आचार्य गणधर देवादिक का ग्रहण होता है । उन्होंने देशावकाशिकव्रत की सीमा निर्धारित करते हुए घर, छावनी, गाँव, खेत, नदी, वन और योजनों की सीमा रूप से मर्यादित करना कहा है । यहाँ कर्म अर्थ में 'स्मृत्यर्थदयीशां कर्म' इस सूत्र से षष्ठी विभक्ति का प्रयोग हुआ है । इस सूत्र का अर्थ है स्मृत्यर्थक धातुएँ तथा दय और ईश धातु के कर्म में षष्ठी विभक्ति होती है ।