GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 94 - टीका हिंदी
From जैनकोष
देशावकाशिकव्रत में काल की मर्यादा बतलाते हुए गणधरदेवादिक ने एक वर्ष, एक ऋतु, एक अयन, एक मास, चार मास, एक पक्ष अथवा एक नक्षत्र को काल की अवधि कहा है अर्थात् इस प्रकार देशावकाशिक व्रत में आने-जाने की कालमर्यादा की जाती है, ऐसा कहा है ।