GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 95 - टीका हिंदी
From जैनकोष
देशावकाशिकव्रत में गृह आदि और वर्ष, मास आदि काल की अपेक्षा जो सीमा निर्धारित की थी, उसके आगे स्थूल और सूक्ष्म दोनों प्रकार से हिंसादि पंच पापों का पूर्णरूप से त्याग हो जाने से सीमा के बाहर दिग्व्रत के समान देशावकाशिव्रत में महाव्रत की सिद्धि होती है ।